यह बात अचंभे में डाल सकती है लेकिन हर साल 10 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र ‘विश्व दाल दिवस’ के तौर पर मनाता है। अनुसंधानकर्ता फलियों पर अब ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जिन्हें भुला दिया गया या जिनका बहुत कम उपयोग किया गया। वास्तव में ‘फलियों’ और ‘दालों’ का अलग-अलग अर्थ है। ‘फलियां’ लैग्यूमिनोसी या फेबिका परिवार के पौधे हैं जबकि ‘दालें’ लैग्यूम पौधे के सूखे हुए बीज हैं। इनमें बीन्स, दाल और चने शामिल हैं। दुनिया से भूख मिटाने में लेग्यूम पौधे सहायक होने का एक कारण है कि इन्हें उर्वरक भूमि या नाइट्रोजन खाद की जरूरत नहीं होती है। पौधों को अहम मॉल्यूकूल जैसे प्रोटीन या डीएनए बनाने के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। अधिकतर लैग्यूम प्रजाति के पौधे अपनी जरूरत का नाइट्रोजन वायुमंडल से लेकर कम पोषण युक्त जमीन में भी फल-फूल सकते हैं। यह प्रक्रिया पौधे और राइजोबिया नामक बैक्टीरिया के आपसी लाभप्रद (सिम्बायोटिक) संबंध पर आधारित होता है। राइजोबिया बैक्टीरिया को लेग्यूम पौधों की जड़ों में बने गांठ में आश्रय मिल जाता है और इसके बदले वे पौधे की नाइट्रोजन आवश्यक वायमुंडल से लेकर पूरी कर देते हैं। नाइट्रोजन को समाहित कर लेने की क्षमता से दालें पोषण तत्वों के भंडार होती हैं खासतौर पर इनमें प्रोटीन और फाइबर की उच्च मात्रा होती है और वसा सीमित मात्रा में होती है। लेकिन लैग्यूम और दालों का यही एकमात्र रोचक पहलू नहीं है।
दालों की 5 खास विशेषताएं
1. अफ्रीकन याम बीन: उच्च प्रोटीन बीन और सतह से नीचे पैदा होन वाला कंद (ट्यूबर) है। अफ्रीकन याम बीन (स्पेनोस्टाइलिस स्टेनोकार्पा) 2 तरह का भोजन बीन्स और भूमिगत कंद मुहैया कराता है। कंद में किसी अन्य गैर लैग्यूम कंद फसलों जैसे आलू और कसावा के मुकाबले अधिक प्रोटीन की मात्रा होती है और बीन्स (फलियां) भी प्रोटीन से भरपूर होती हैं। यह अफ्रीकी मूल का पौधा है और पूरे अफ्रीका महाद्वीप में पाया जाता हैं।
- कॉमन बीन (बाकला/राजमा):यह कई प्रकार और वातावरण के अनुरूप विविधता वाली फसल है। कॉमन बीन (फेसियोलस वलगरिस) के कई प्रकार दुनियाभर में मिलते हैं। इनकी सबसे बड़ी खासियत है कि लैग्यूम प्रजाति के अन्य पौधों के मुकाबले ये राइजोबियल की कहीं अधिक प्रजातियों को आश्रय देती हैं। इससे से संभभवत: कॉमन बीन्स को अपने मूल स्थान से परे भी दुनिया के विभिन्न वातावरण में फलने-फूलने का मौका मिला। यह विभिन्न वातावरण में भी नाइट्रोजन की जरूरत को पूरी कर लेते हैं जिससे यह लैग्यूम की सबसे लचीली प्रजातियों में से एक है।
- मटर:मटर (पिसम सैटिवम) दुनिया की सबसे प्राचीन फसलों में से एक है जिसकी कृषि मानव ने शुरू की। इसने अनुवांशिकी की समझ में मदद की और इसके लिए ग्रेगॉर मैंडल के मटर के पौधे पर किए गए प्रयोग को श्रेय जाता है। मटर की अनुवांशिकी विविधता भी फसलों की जानकारी हासिल करने का अहम स्रोत है जो जलवायु परिवर्तन की वजह से विभिन्न मौसमी परिस्थितियों में भी जीवित रहता है।
- चना:चना (सिसर एरिटिनम) को सूखा प्रतिरोधी होने के लिए जाना जाता है। जहां पर पानी की कमी होती है वहां पर चने की जंगली प्रजातियां प्रमुखता से उगती हैं। जंगली चने की प्रजातियां 40 डिग्री सैल्सियस तक के तापमान को सह सकती हैं और यह आधुनिक सूखा रोधी चने के लिए बेहतरीन अनुवांशिकी स्रोत हैं। वैज्ञानिक उन गुणों की खोज कर रहे हैं जिससे सूखे के दौरान चने की पैदावर कम हो सकती है। यह जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर खाद्य सुरक्षा में योगदान कर सकता है।
- लुपिंस:सफेद लुपिन (लुपिंस एल्बस), पीले लुपिन (लुंिपंस लुटियस), पर्ल लुपिन (लुंपिस मटाबिलिस) बिना अतिरिक्त उर्वरक की जरूरतों के पोषक तत्व प्राप्त करने के लिए विशेष जड़ों का विकास कर सकते हैं। पोषक तत्व की कमी होने पर यह मृदा में मौजूद फॉस्फोरस के कणों को सोखने में सक्षम है। ये जड़े ‘बॉटलब्रश’ के आकार की होती हैं और फॉस्फोरस की कमी होने पर यह विकसित होती हैं।