हींग एक वृक्ष का दूध है जो जमकर गोंद की शक्ल ले लेता है। बता दें के हींग भारत में यह ईरान से आती है। काली भूरी तीखी गंध वाली हींग सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यह भोजन में छौंक आदि में व्यापक स्तर पर प्रयोग की जाती है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार हींग पेट की अग्नि को बढ़ाने वाली, आमाशय व आंतों के लिए उत्तेजक, पित्तवर्द्धक, मल बांधने वाली, खांसी, कफ, अफारा मिटाने वाली एवं हृदय से संबंधित छाती के दर्द व पेट के दर्द को मिटाने वाली एक परीक्षित औषधि है।
इसे अजीर्ण व कृमि रोगों में भी प्रयोग करते हैं। यह लिवर को शक्ति देती है एवं मस्तिष्कीय विकारों में भी इसका प्रभाव देखा गया है। हींग के सेवन से श्वास नलिका में जमा कफ पतला होकर निकल जाता है। हींग को शुद्ध करके लिया जाता है। ज्वर तथा सन्निपात की स्थिति होने पर हींग, कपूर व अदरक का रस मिलाकर जीभ पर लगा देने भर से आराम होने लगता है। छाती की धड़कन, हृदय शूल, घबराहट में एक रत्ती मावा में ली गयी हींग तत्काल लाभ देती है।
हिस्टीरिया में इसे मस्तिष्कउत्तेजक होने तथा स्रायु तंतुओं को बल पहुंचाने वाले गुण के कारण दिया जाता है जो निश्चित ही लाभ पहुंचाता है। काला नमक, अजवाइन व स्याहजीरा आदि के साथ यह सभी उदर रोगों में हिंग्वाष्टक चूर्ण के रूप में प्रयुक्त होती है। निमोनिया, ब्रांकाइटिस, हूपिंग कफ में 1से 4 रत्ती की मात्र में दी गई शोधित हींग बड़ी लाभकारी है। पेट के कृमियों के लिए भी इसका नियमित सेवन लाभप्रद है।