संस्कृत ग्रंथों में अमरफल के नाम से सुविख्यात आंवला (फिलेन्थस एम्बलिका) प्रकृति का वह वरदान है, जिसका सेवन कर हर आदमी हर ऋतु में तरोताजा और तन्दुरूस्त रह सकता है। यह फल देश भर में पाया जाता है तथा सबके लिए जाना-पहचाना है। इसके तीन प्रकारों, कलमी, बीजू और जंगली आंवलों में जंगली आंवला सर्वाधिक लाभदायक होता है। आंवले में प्रोटीन, वसा, लोहा, कैल्शियम, कार्बोज, खनिज लवण, फास्फोरस के अलावा विटामिन-सी पर्याप्त मात्र में होता है। यह स्वाद में कसैला, मधुर, चटपटा, अम्लयुक्त एवं प्रकृति में शीतल होता है।
आंवला त्रिदोष नाशक अर्थात् वात-पित्त-कफ जनित रोगों को दूर करता है। रक्त शुद्धि, नेत्र ज्योति, बालों की सुरक्षा, पीलिया, अजीर्ण, पतले दस्त, पित्त दोष, उल्टी, हिचकी, नकसीर, धातु-रोग, श्वांस, खांसी, मुहांसे आदि के लिए आंवला लाभकारी है। आंवले का उपयोग तीनों प्रकार से लाभ देता है। पहला-कच्चा फल चटनी या रस निकाल कर, दूसराअचार या मुरब्बा बनाकर और तीसरा-सुखाकर चूर्ण बनाकर दवा के रूप में। बाजार में आंवला तीनों रूपों में उपलब्ध रहता है। आजकल वैज्ञानिक, वैद्य और चिकित्सक आंवले के गुणों पर विशेष शोध कर रहे हैं। नवीनतम शोधों से पता चला है कि आंवले में विटामिन-सी की मात्र संतरे और नारंगी से कहीं अधिक होती है इसलिए शरीर की वृद्धि के लिए यह अत्यंत उपयोगी है।
गर्मियों में जब प्यास सताती है, तब इसके चूर्ण को पानी में भिगोकर मिश्री या शहद मिलाकर पीने से बड़ी राहत मिलती है। इसी ऋतु में पतले दस्त की रोकथाम के लिए इसका चूर्ण काले नमक के साथ लेना चाहिए। ‘लवण भास्कर चूर्ण’ भी आंवले द्वारा निर्मित औषधि है। गर्मी के कारण अथवा बरसात के शुरू में आंखें लाल हो जाती हैं। सूजन अथवा दर्द होने लगता है। ऐसी दशा में त्रिफला चूर्ण (आंवला, हरड़ और बहेड़ा का मिश्रण) पानी में भिगोकर उस पानी से आंखों को धोयें, लाभ मिलेगा। सिरदर्द, बालों को झड़ने से बचाने, उनके-प्राकृतिक रंग को बचाए रखने के लिए आंवला चूर्ण से सिर धोना चाहिए ‘आंवले का तेल’ एवं आंवलायुक्त साबुन तथा क्रीम और पाऊडर भी बाजार में पर्याप्त मात्र में उपलब्ध हैं।
गर्मियों एवं बरसात में होने वाले रोग जैसे फोड़ेफुंसी, मुंहासे तथा ‘लू’ के लिए भी यह बहुत लाभकारी है। लू लगने पर आंवला रस इमली, संतरा या मौसम्मी के साथ बहुत फायदा पहुंचाता है। इसी प्रकार इसका तेल त्वचा रोग को दूर करता है। गर्मियों में अक्सर-नकसीर, जिसे नाक फूटना कहते हैं, की समस्या पैदा हो जाती है। इस समय आंवले का काढ़ा पिलाना चाहिए। इसी प्रकार पेशाब की जलन दूर करने के लिए चूर्ण को पानी या शहद के साथ लेना अच्छा रहता है। शारीरिक कमजोरी, धातु-रोग और कब्जियत जैसे रोगों के लिए तो यह रामबाण दवा है।
‘च्यवनप्राश‘ नामक औषधि से सारी दुनिया परिचित है। कहते हैं कि च्यवन नामक ऋषि ने आंवले के ऐसे ही अवलेह के सेवन से नव-यौवन प्राप्त किया था। स्त्रियों के प्रदर-रोग में आंवला रस शहद के साथ बराबर मात्र में बहुत लाभ देता है। बच्चों के दांत निकलते समय दर्द एवं पतले दस्त को रोकने के लिए आंवला चूर्ण शहद के साथ चटाना चाहिए। बुखार के साथ अम्ल-पित्त, बवासीर, आमवात, खांसी, तुतलाना, पेचिश, दिल की धड़कन, गला बैठना, सिरदर्द, मानसिक तनाव, खसरा, गठिया, घमौरी, चेचक आदि अनेक रोगों में आंवला उपयोगी है। ‘यौवन-शक्ति‘ के लिए तो एक अकेला आंवला ही पर्याप्त है। पृथ्वी की अमृत-संजीवनी भी आंवला ही है, इसमें संदेह नहीं।